{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}} <poem>वंदना के इन स्वरों मे,<br>एक स्वर मेरा मिला लो।<br><br>
बंदिनी माँ को न भूलो,<br>राग में जब मत्त झूलो;<br><br>
अर्चना के रत्नकण में,<br>एक कण मेरा मिला लो।<br><br>
जब हृदय का तार बोले,<br>श्रृंखला के बंद खोले;<br><br>
हो जहाँ बलि शीश अगणित,<br>एक शिर मेरा मिला लो।<br><br/poem>