878 bytes added,
04:16, 18 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}<poem>इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ,
तासों सदा व्याकुल बिकट अकुलायँगी।
प्यारे 'हरिचंद जूं' की बीती जानि औध, प्रान
चाहते चले पै ये तो संग ना समायँगी।
देख्यो एक बारहू न नैन भरि तोहिं यातैं,
तौन जौन लोक जैहैं तहाँ पछतायँगी।
बिना प्रान प्यारे भए दरस तुम्हारे, हाय!
मरेहू पै आंखे ये खुली ही रहि जायँगी। </poem>