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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>'''चाँद -1'''

मेरा चाँद
बिन्दी लगाता है
चोटी बनाता है
सीने से लग कर गुलाब हो जाता है
ज़ुल्फ बिखरा कर सावन हो जाता है
नाराज़ हो कर अमावस हो जाता है
मेरा चाँद मुस्कुराता है, सुबह हो जाती है
इसीलिये अंबर को मुझसे ही आग है
उसके चाँद में दाग है..

'''चाँद -2'''

मेरी आँखों में यूं ही बैठे रहो चाँद
तुम जो जाते हो
अमावस हो जाता है.

'''चाँद -3'''

मुस्कुराओ चाँद
तुम्हारे चेहरे पर गुस्सा भला नहीं लगता
शरद की पूनम का चाँद अमृत बरसाता है
अंगारे नहीं उगलता...
बिलकुल खामोश हो कर मेरी आँखों में देखो
डूब जाओगे, शीतल हो जाओगे...

'''चाँद -4'''

चंद पत्थर के टुकडे दिखा कर
चाँद के पत्थर होनें का दावा करते हो
झूठे हो तुम
मैनें चाँद के सीनें में सिर रख कर धडकनें सुनी हैं
और बाहों में आ कर तो चाँद मोम हो जाता है...

'''चाँद -5'''

मेरा चाँद
आधा नहीं होता, अधूरा नहीं होता
पूनम का चाँद था मेरी हथेली पर
बढ कर दिल में समा गया..
और बढ कर दुनिया हो गया मेरी...

'''चाँद -6'''

चाँदनी की चिन्गी
तुम्हारे जाते ही कलेजा सुलगा देती है
तुम होते हो तो आग होती है
लेकिन जलन नहीं होती..

'''चाँद -7'''

मेरी ज़िन्दगी से जाने का तुम्हारा फैसला चाँद
मुझे भटका न दे
कि रास्ता पार करना है
तो रात चाँदनी रात हो..

'''चाँद -8'''

सूरज में इतनी तपिश कहाँ
जितना मेरा चाँद जलता है
जब भी बाँहों में भर कर
उसके होठों पर अंगारे रखे हैं मैनें..

'''चाँद -9'''

चाँद तुम हो
तो भोर है
नहीं रहोगे
रात हो जायेगी..

'''चाँद -10'''

न जाओ अभी चाँद
कुछ देर और बैठे रहो मेरे करीब
वक्त रुक जाता है
जिन्दगी चल पडती है..

'''चाँद -11'''

जब तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं रहोगे चाँद
मैं आसमा से जला करूंगा
कि उसका चाँद शाम ढले
दिन और दुनिया से नज़रें चुरा कर
निकल ही आता है..
मेरी तो दिन और दुनियाँ में अंधेरा हो जायेगा...

१९.१०.२०००
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