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साकेत / मैथिलीशरण गुप्त / समर्पण / निवेदन
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14:53, 18 अक्टूबर 2009
::तुंदिल शरीर एक ऊधम मचाते हैं।
गोद भरे मोदक धरे हैं, सविनोद उन्हें
::सूंड़ से
उठाकर
उठाके
मुझे देने को दिखाते हैं,
देते नहीं, कंदुक-सा ऊपर उछालते हैं,
::ऊपर ही झेल कर, खेल कर खाते हैं!"
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