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{{KKRachna
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"|संग्रह=अपरा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavita}}<poem>सखि, वसन्त आया<br>भरा हर्ष वन के मन,<br>नवोत्कर्ष छाया।<br><br>
किसलय-वसना नव-वय-लतिका<br>मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका<br>मधुप-वृन्द बन्दी-<br>पिक-स्वर नभ सरसाया।<br><br>
लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर<br>बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,<br>जागी नयनों में वन-<br>यौवन की माया।<br><br>
अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;<br>केशर के केश कली के छुटे,<br><br>
स्वर्ण-शस्य-अंचल<br>पृथ्वी का लहराया।<br><br/poem>
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