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15:58, 18 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
।रचनाकाल=15 दिसम्बर, 1952
}}
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<poem>
ऊँट-बैल का साथ हुआ है;
कुत्ता पकड़े हुए जुआ है।
यह संसार सभी बदला है;
फिर भी नीर वही गदला है,
जिससे सिंचकर ठण्डा हो तन,
उस चित-जल का नहीं सुआ है।
रूखा होकर ठिठुर गया है;
जीवन लकड़ी का लड़का है,
खोले कोंपल, फले फूलकर
तरु-तल वैसा नहीं कुआँ है।
</poem>