484 bytes added,
07:40, 19 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
वो शाम को घर लौट के आएँगे तो फिर
चाहेंगे कि सब भूल कर उनमें खो जाऊँ
जब उन्हें जागना है मैं भी जागूँ
जब नींद उन्हें आये तो मैं भी सो जाऊँ
</poem>