823 bytes added,
00:31, 20 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=देव
}}<poem>फटिक सिलानि सौं सुधारयौं सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाई उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए देव,
दूध को सो फेन फैल्यौ आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामे ठाढी झिलमिल होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिम्ब सो लागत चंद॥ </poem>