गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
तुम आये कनकाचल छाये / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
378 bytes added
,
15:20, 20 अक्टूबर 2009
परिणय अगणन यौवन-उपवन,
संकुल फल के गुंजन भाये;
मधु के पावन सावन सरसे,
परसे जीवन-वन मुरझाये।
रवि-शशि-मण्डल, तारा-ग्रह-दल,
फिरते पल-पल दृग-दृग छाये,
मूर्छित गिरकर जो अनृत अकर,
सुषमा के वर सर लहराये।
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits