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परिणय अगणन यौवन-उपवन,
संकुल फल के गुंजन भाये;
मधु के पावन सावन सरसे,
परसे जीवन-वन मुरझाये।
रवि-शशि-मण्डल, तारा-ग्रह-दल,
फिरते पल-पल दृग-दृग छाये,
मूर्छित गिरकर जो अनृत अकर,
सुषमा के वर सर लहराये।
</poem>
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