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Kavita Kosh से
सपनों की दुनिया में जीते-जीते उन्हीं को कब कागज़ पर लिखना शुरू कर दिया पता ही न चला, सपने जब धरातल से मिले और उनका रूप बदलता चला गया ।
और दुनिया से मिले अनुभव भी मेरी गज़लों का हिस्सा बन गए ।