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जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र
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18:26, 21 अक्टूबर 2009
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते
-
आते ज़माने लगे
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
गुलों के जहाँ शामियाने लगे
पढाई
-
लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे
</poem>
अनिल जनविजय
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