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चरन कमल बंदौ हरि राई / सूरदास
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09:48, 22 अक्टूबर 2009
[[Category:पद]]
<poem>
चरन कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥
</poem>
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