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|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग लारंग
<poem>
तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।
 
छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥
 
जैसे नाद-मगन बन सारंग, बधै बधिक तनु बान।
 
ज्यौं चितवै ससि ओर चकोरी, देखत हीं सुख मान॥
 
जैसे कमल होत परिफुल्लत, देखत प्रियतम भान।
 
दूरदास, प्रभु हरिगुन त्योंही सुनियत नितप्रति कान॥
 </poem>
को इसी प्रकार भगवत्प्रेम में तन्मय हो जाना चाहिए।
शब्दार्थ :- जन =दास। नाद =शब्द, राग। सारंग =मृग। भान= भानु,सूर्य।
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