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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग काफी
 <poem>
निरगुन कौन देश कौ बासी।
 
मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह दै बूझति सांच न हांसी॥
 
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि को दासी।
 
कैसो बरन, भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥
 
पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे कहैगो गांसी।
 
सुनत मौन ह्वै रह्यौ ठगो-सौ सूर सबै मति नासी॥
  </poem>
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