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नैन भये बोहित के काग / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
}}
 [[Category:पद]]
राग देश
<poem>
नैन भये बोहित के काग।
 
उड़ि उड़ि जात पार नहिं पावैं, फिरि आवत इहिं लाग॥
 
ऐसी दसा भई री इनकी, अब लागे पछितान।
 
मो बरजत बरजत उठि धाये, नहीं पायौ अनुमान॥
 
वह समुद्र ओछे बासन ये, धरैं कहां सुखरासि।
 
सुनहु सूर, ये चतुर कहावत, वह छवि महा प्रकासि॥
 </poem>
भावार्थ :- `उड़ि उड़ि....लाग,' ये नेत्र संसार की दूसरी-दूसरी वस्तुएं भी देखते
`ये चतुर....प्रकासि,' नेत्र बड़े चतुर समझे गये हैं, पर उस असीम सुंदरता के सामने
इनकी चतुराई नहीं चलती, वहां तो ये भी ठग लिये गए हैं।
 
शब्दार्थ :- बोहित =जहाज। लाग =स्थान। बरजत =रोकते हुए। ओछे बासन =छोटे बर्तन।
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