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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग बिलावल
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मन तोसों कोटिक बार कहीं।
 
समुझि न चरन गहे गोविन्द के, उर अघ-सूल सही॥
 
सुमिरन ध्यान कथा हरिजू की, यह एकौ न रही।
 
लोभी लंपट विषयनि सों हित, यौं तेरी निबही॥
 
छांड़ि कनक मनि रत्न अमोलक, कांच की किरच गही।
 
ऐसो तू है चतुर बिबेकी, पय तजि पियत महीं॥
 
ब्रह्मादिक रुद्रादिक रबिससि देखे सुर सबहीं।
 
सूरदास, भगवन्त-भजन बिनु, सुख तिहुं लोक नहीं॥
</poem>
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