भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग देवगंधार
 <poem>
मेरो मन अनत कहां सचु पावै।
 
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥
 
कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
 
परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥
 
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
 
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥
 </poem>
प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है। कमल-रसास्वादी
भ्रमर भला करील का कड़वा फल चखेगा ?कामधेनु छोड़कर बकरी को कौन मूर्ख दुहेगा ?
 
 
शब्दार्थ :- अनत =अन्यत्र। सचु =सुख, शान्ति। कमलनैन = श्रीकृष्ण। दुर्मति= मूर्ख
खनावै = खोदता है। करील -फल = टेंट। छेरी =बकरी।
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits