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'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] से'''<br><br>
जब यह दीप थके तब आना<br><br> 
यह चंचल सपने भोले हैं,<br>
दृगजल पर पाले मैंने मृदु,<br>
पलकों पर तोले हैं<br>
दे सौरभ से पंख इन्हें सब नयनों में पहुंचानापहुँचाना<br><br> 
साधें करुणा-अंक ढलीं हैं,<br>
सान्ध्य सांध्य गगन सी रंगमयी पर<br>
पावस की सजला बदली हैं,<br>
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना<br><br> 
यह उड़ते क्षण पुलक भरे हैं,<br>
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,<br>
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की,<br>
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के,<br>
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना<br><br> 
लौ ने वर्ती को जाना है,<br>
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने<br>
रज का अंचल पहचाना है,<br>
चिर बन्धन में बांध इन्हें घुलने का वर दे जाना!<br><br>