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विसर्जन / महादेवी वर्मा

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निशा कोकी, धो देता राकेश
चाँदनी में जब अलकें खोल,
कली से कहता था मधुमास
’बता बता दो मधुमदिरा का मोल’मोलभटक जाता था पागल बातधूल में तुहिन कणों के हार;सिखाने जीवन का संगीततभी तुम आये थे इस पार।
बिछाती थी सपनों के जाल
मुझे मधुमय पीडा़ में बोर;
भूलती थी मैं सीखे रागझटक जाता था पागल वातबिछलते थे कर बारम्बार,धूलि में तुहिन कणों के हार;तुम्हें तब आता था करुणेश!सिखाने जीवन का संगीतउन्हीं मेरी भूलों पर प्यारतभी तुम आये थे इस पार!
गये तब से कितने युग बीत
नहीं पर मैंने पाया सीख
तुम्हारा सा मनमोहन गान।
 
भूलती थी मैं सीखे राग
बिछलते थे कर बारम्बार,
तुम्हें तब आता था करुणेश!
उन्हीं मेरी भूलों पर प्यार!
नहीं अब गाया जाता देव!
विश्ववीणा में अपनी आज
मिला लो यह अस्फुट झंकार!
 
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