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जी हाँ , लिख रहा हूँ / नागार्जुन
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,
06:36, 25 अक्टूबर 2009
लिखावट को कागज़ पर
नोट कर पता हूँ
स्पन्दनशील संवेदन की
<br>
क्षण-भंगुर लड़ियाँ
<br>
सहेजकर उन्हें और तक
<br>
पहुँचाना !
<br>
बाप रे , कितना मुश्किल है !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
अनिल जनविजय
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