भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह तुम थीं / नागार्जुन

22 bytes added, 07:04, 25 अक्टूबर 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
कर गई चाक
 
तिमिर का सीना
 
जोत की फाँक
 
यह तुम थीं
 
सिकुड़ गई रग-रग
 
झुलस गया अंग-अंग
 
बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार
 
उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार
 
अचानक उमगी डालों की सन्धि में
 
छरहरी टहनी
 
पोर-पोर में गसे थे टूसे
 
यह तुम थीं
 
झुका रहा डालें फैलाकर
 
कगार पर खड़ा कोढ़ी गूलर
 
ऊपर उठ आई भादों की तलैया
 
जुड़ा गया बौने की छाल का रेशा-रेशा
 
यह तुम थीं !
'''1957 में रचित</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits