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मैं हरि, पतित पावन सुने / तुलसीदास
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18:07, 26 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=तुलसीदास
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मैं हरि, पतित पावन सुने।
मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने।
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥
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