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02:14, 27 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
}} <poem>छिन में धूप
छाँह छिन ओझल,
पल पल चंचल-
गोरी दुबली, बेला उजली, जैसे बदली क्वार की
सुबुक हठीली
हरी पर्त में
हल्की नीली
आग लपेटे - एक कचनार कली
दखिन पवन में
झोंके लेती डार की
लहर-बदन में
जिसने आ कर
कर दी है
छवि और उजागर
मेरे छोटे फूलबसे घर, धूपधुली छत, छाँहलिपी दीवार की!</poem>