भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुणगान / मैथिलीशरण गुप्त

1 byte added, 16:51, 27 अक्टूबर 2009
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits