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::झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
::का हाथों में दंड,
चिन्ह कभी का अधिकारों का
::अब केवल पाखंड,
::::समझ गई अब सारी जगती
::::::क्या सिंगार, क्या सत्य,
कर्मठ हाथों के अन्दर ही
::बसता तेज प्रचंड;
::::जिधर उठेगा महा सृष्टि
::::::होगी या महा प्रलय,
::::विकल हमारे राज दंड में
::::::साठ कोटि भुजबल!
::::हम ऐसे आज़ाद, हमारा
::::::झंडा है बादल!
</poem>
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