भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अशोक चक्रधर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
चलती रहीं
चलती रहीं
चलती रहीं बातें
यहाँ की, वहाँ की
इधर की, उधर की
इसकी, उसकी
जने किस-किस की,
कि
एकएक
सिर्फ़ उसकी आँखों को देखा मैंने
उसने देखा मेरा देखना ।
और... तो फिर...
किधर गईं बातें,
कहाँ गईं बातें ?
</poem>