भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कवि: [[रहीम]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:दोहे]]
[[Category:रहीम]]
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।<br>
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥<br><br>
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।<br>
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥<br><br>
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।<br>
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥<br><br>
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।<br>
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥<br><br>
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।<br>
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥<br><br>
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।<br>
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥<br><br>
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।<br>
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥<br><br>
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।<br>
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥<br><br>
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।<br>
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥<br><br>
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।<br>
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥10॥<br><br>
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।<br>
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥11॥<br><br>
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।<br>
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥<br><br>
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।<br>
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥<br><br>
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।<br>
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥14॥<br><br>
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।<br>
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥<br><br>
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।<br>
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥<br><br>
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।<br>
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥<br><br>
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।<br>
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥<br><br>
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।<br>
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब्ब॥19॥<br><br>
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।<br>
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥20॥<br><br>
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।<br>
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय॥21॥<br><br>
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।<br>
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥22॥<br><br>
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।<br>
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥23॥<br><br>
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।<br>
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥24॥<br><br>
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।<br>
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥25॥<br><br>
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।<br>
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥26॥<br><br>
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।<br>
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥27॥<br><br>
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।<br>
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥28॥<br><br>
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।<br>
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥29॥<br><br>
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।<br>
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥30॥<br><br>