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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>इन विटपवरों ने हे मरूत् ! मोदकरी,सुरभि सतत देके की सु-सेवा तुम्हारी!
व्यथित अब इन्हीं के वह्नि से आज देख
ज्वलित कर रहे हो और भी क्यों विशेष।</poem>