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03:57, 1 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>ये जीव-जंतुगण पा कर तीव्र क्लेश,
हैं हो चुके अहह नीरद! भस्म-शेष।
दावाग्नि से जल चुका वन प्रांत सारा,
बरसा रहे अब किस लिये वारि-धारा?</poem>