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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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जिसका भी जी चाहे कह ले
-ऐसे नहीं कभी थे पहले:
:::खेत सुनहले।
:::खेत सुनहले...
अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:
:::::नीले फूल।
::::नीले फूल...
इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:
:::::::पीली सरसों।
::::::पीली सरसों...
मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:
::::स्वागत हे ॠतुराज वसन्त।
:::स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...
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