Changes

कभी पहले भी / अजित कुमार

15 bytes added, 15:20, 1 नवम्बर 2009
|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
सूनी सांझ, रंगी पगडंडी,
 
डूबा-डूबा-सा सूरज,
 
सभी दूसरे पेड़ों से कुछ अलग नीम
 
ऊंची-तिरछी…
 
अरे, यहां तो
 
पहले भी मैं आया हूं ।
 
यही साँझ, ये ही पगडंडी,
 
यही सूर्य, यह वृक्ष अकेला …
 
मुझको यह स कितना परिचित,
 
निश्चय ही मैं यहां कभी पहले भी आया हूं ।
 
ठीक यहीं पर, इसी डगर पर,
 
इसी अकेले वृक्ष तले
 
::आया हूं ।
 
पहले कभी, इसी जीवन में, पहले कभी,
 
यहां निश्चय ही आया हूं ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits