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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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आओ, हम फिर से जियें ।
 
बहता-बहता मेघखंड जो
 
पहुँच गया है वहाँ क्षितिज तक
 
लौटा लायें उसे,
 
कहें :
 
‘ओ, फिर से बहो ।
 
मन, मन्थर, मृदु गति से …
 
शोभावाही मेघ, रसीले मेघ, दूत ।
 
जो कथा कही थी, फिर से कहो ।‘
 
और …
 
अपलक, अविचल
 
हम उसे निरखते रहें, पियें ।
 
आओ, हम फिर से जियें ।
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