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Kavita Kosh से
|रचनाकार=अज्ञेय
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{{KKCatKavita}}<poem>अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी<br>कि मैं मँगनी के घोड़े पर<br>सवारी पर<br>ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान<br>और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान<br>से किराया<br>वसूल कर लाया हूँ ।<br>थैली वाले को थैली<br>तोड़े वाले को तोड़ा<br>-और घोड़े वाले को घोड़ा<br>सब को सब का लौटा दिया<br>अब मेरे पास यह घमंड है<br>कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।<br><br/poem>