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'''चरण या पद'''
छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छ: छह पंक्तियां होती हैं। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –<br><br>
रघुकुल रीति सदा चलि जाई।<br>
प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।।<br><br>
'''मात्रा'''<br>
किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है¸ उसे 'मात्रा' कहते हैं। 'मात्राएंमात्राएँ' दो प्रकार की होती हैं: (1) लघु (2) गुरू<br><br>
''लघु मात्रायें'' – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ¸ इ¸ उ¸ ऋ की मात्रायें ।<br>
''गुरू मात्राएंमात्राएँ'' – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई¸ ऊ¸ ए¸ ऐ¸ ओ¸ औ की मात्रायें।<br><br>
''लघु वर्ण'' – हृस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'लघु वर्ण' माना जाता है¸ उसका चिन्ह एक सीधी पाई(।) मानी जाती है।<br>
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