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वसंत आ गया / अज्ञेय

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[[Category:कविताएँ]]
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मलयज का झोंका बुला गया
खेलते से स्पर्श से
रोम रोम को कंपा गया
जागो जागो
जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
मलयज का झोंका बुला गया <br>पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली खेलते सिरिस ने रेशम से स्पर्श से <br>वेणी बाँध ली नीम के भी बौर में मिठास देख रोम रोम को कंपा गया <br>हँस उठी है कचनार की कली जागो जागो <br>टेसुओं की आरती सजा के जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो <br><br>बन गयी वधू वनस्थली
पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली <br>सिरिस ने रेशम स्नेह भरे बादलों से वेणी बाँध ली <br>नीम के भी बौर में मिठास देख <br> हँस उठी है कचनार की कली <br>व्योम छा गया टेसुओं की आरती सजा के <br>जागो जागो बन गयी वधू वनस्थली <br><br>जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
स्नेह भरे बादलों से <br>चेत उठी ढीली देह में लहू की धार व्योम छा गया <br>बेंध गयी मानस को दूर की पुकार जागो जागो <br>गूंज उठा दिग दिगन्त जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो <br><br>चीन्ह के दुरन्त वह स्वर बार "सुनो सखि! सुनो बन्धु! प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार!"
चेत उठी ढीली देह में लहू की धार <br>बेंध गयी मानस को दूर की पुकार <br>गूंज उठा दिग दिगन्त <br>चीन्ह के दुरन्त वह स्वर बार <br> "सुनो सखि! सुनो बन्धु! <br>प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार!" <br><br> आज मधुदूत निज <br> गीत गा गया <br> जागो जागो <br> जागो सखि वसन्त आ गया, जागो! <br><br/poem>
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