भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
}}{{KKCatKavita}}<poem>
शिशिर ने पहन लिया वसंत का दुकूल
गंध बन उड़ रहा पराग धूल झूल
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे! ऋतुराज आ गया।
</poem>