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|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
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अंकुरित धरा से क्षमा
व्योम से झरी रुपहली करुणा
सरि, सागर, सोते-निर्झर-सा
उमड़े जीवन :
कहीं नहीं है मरना ।
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