भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँदनी चुप-चाप / अज्ञेय

19 bytes removed, 18:57, 1 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
 
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चाँदनी चुप-चाप सारी रात
सूने आँगन में
:::जाल रचती रही।
मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम
:::आँच पर तँचती रही।
व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
:::मनश्चित्रों से परचती रही।
चाँदनी चुप-चाप सारी रात<br>सूने आँगन में<br>:::जाल रचती रही।<br>मेरी रूपहीन अभिलाषा<br>अधूरेपन की मद्धिम<br>:::आँच पर तँचती रही।<br>व्यथा मेरी अनकही<br>आनन्द की सम्भावना के<br>:::मनश्चित्रों से परचती रही।<br><br> मैं दम साधे रहा,<br>मन में अलक्षित<br>:::आँधी मचती रही :<br>प्रातः बस इतना कि मेरी बात<br>सारी रात<br>उघड़कर वासना का<br>
:::रूप लेने से बचती रही।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits