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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>जिस दिन तु…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जिस दिन तुम इस हृदय कुंज पर
अकस्मात छा जाओगे,
करुणा धाराएँ बरसा कर
सब संताप मिटाओगे।
कहीं शुष्कता नहीं रहेगी,
तृष्णानल बुझ जावेगी;
इसको हरा भरा करके तुम
धूल उड़ा कर यह समीर जो
इसे मलिन करता रहता
तुम सर्वत्र इसी के द्वारा
शुभ सौरभ फैलाओगे!
आतप की इस दु:सहता में
है संतोष यही हमको--
पावस में हे घनश्याम! तुम
नवजीवन ले आओगे।
'''मार्च 1919, सरस्वती में प्रकाशित'''</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जिस दिन तुम इस हृदय कुंज पर
अकस्मात छा जाओगे,
करुणा धाराएँ बरसा कर
सब संताप मिटाओगे।
कहीं शुष्कता नहीं रहेगी,
तृष्णानल बुझ जावेगी;
इसको हरा भरा करके तुम
धूल उड़ा कर यह समीर जो
इसे मलिन करता रहता
तुम सर्वत्र इसी के द्वारा
शुभ सौरभ फैलाओगे!
आतप की इस दु:सहता में
है संतोष यही हमको--
पावस में हे घनश्याम! तुम
नवजीवन ले आओगे।
'''मार्च 1919, सरस्वती में प्रकाशित'''</poem>