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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया,<br> ::बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? ::भूल अभी से इस जग को!<br><br> तज कर तरल तरंगों को, इन्द्रधनुष के रंगों को,<br> ::तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन? ::भूल अभी से इस जग को!<br><br> कोयल का वह कोमल बोल, मधुकर की वीणा अनमोल,<br> ::कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण? ::भूल अभी से इस जग को!<br><br> ऊषा-सस्मित किसलय-दल, सुधा-रश्मि से उतरा जल,<br> ::ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन? ::भूल अभी से इस जग को!