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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हें नहीं तो किसे और <br> मैं दूँ <br> अपने को <br> (जो भी मैं हूँ)? <br> तुम जिस ने तोड़ा है <br> मेरे हर झूठे सपने को— <br> जिस ने बेपनाह <br> मुझे झंझोड़ा है <br> जाग-जाग कर <br> तकने को <br> आग-सी नंगी, निर्ममत्व <br> औ' दुस्सह <br> सच्चाई को— <br> सदा आँच में तपने को— <br> तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले, <br> मानव, <br> तुम को—मेरे भाई को! <br/poem>
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