गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उजड़ा घर / अनंत कुमार पाषाण
16 bytes added
,
18:49, 3 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनंत कुमार पाषाण
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>कल मैं उस मकान में जा कर,
रहा ढूंढता तुमको दिन भर,
जिसके उस पीले बरामदे में हम चाय पिया करते थे।
मैं था औ मेरी छाया थी,
औ मकान वह पडा बंद था!
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits