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उजड़ा घर / अनंत कुमार पाषाण

16 bytes added, 18:49, 3 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनंत कुमार पाषाण
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कल मैं उस मकान में जा कर,
रहा ढूंढता तुमको दिन भर,
जिसके उस पीले बरामदे में हम चाय पिया करते थे।
मैं था औ मेरी छाया थी,
औ मकान वह पडा बंद था!
 
</poem>
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