Changes

नया पृष्ठ: <poem>{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली |संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ा…
<poem>{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ाज़ली
}}
<poem>
बहुत मैला है ये सूरज
किसी दरिया के पानी में
उसे धोकर सजाएँ फिर

गगन में चाँद भी
कुछ धुँधला-धुँधला है
मिटा के इस के सारे दाग-धब्बे
जगमगाएँ फिर

हवाएं सो रहीं हैं पर्वतों पर
पाँव फैलाए
जगा के इन को नीचे लाएँ
पेड़ों में बसाएँ फिर

धमाके कच्ची नींदों में
उड़ा देते हैं बच्चों को
धमाके खत्म कर के
लोरियों को गुनगुनाएँ फिर

वो जबसे आई है
यूँ लग रहा है
अपनी ये दुनिया
जो सदियों की अमानत है
जो हम सब की विरासत है
पुरानी हो चुकी है
इसमें अब
थोड़ी मरम्मत की ज़रूरत है


(अपनी बेटी तहरीर के जन्म-दिन पर)
</poem>