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स्त्रियाँ / अनामिका

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पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद !
पढ़ा सुना गया हमको<br>जैसे पढ़ा जाता है काग़ज<br>बच्चों की फटी कॉपियों का<br>‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने यों ही उड़ते मन से पहले!<br>देखा गया हमको<br>जैसे कि कुफ्त हो उनींदे<br>सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने देखी जाती है कलाई घड़ी<br>सस्ते कैसेटों पर अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !<br><br>
सुना भोगा गया हमको<br>यों ही उड़ते मन से<br>बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह जैसे सुने जाते एक दिन हमने कहा– हम भी इंसान हैं फ़िल्मी गाने<br>सस्ते कैसेटों पर<br>हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !<br><br>नौकरी का पहला विज्ञापन।
भोगा गया हमको<br>देखो तो ऐसे जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह<br>एक दिन हमने कहा–<br>हम भी इंसान हैं<br>हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर<br>जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद<br>नौकरी का पहला विज्ञापन।<br><br>जलती हुई आग।
देखो तो ऐसे<br>सुनो, हमें अनहद की तरह और समझो जैसे कि ठिठुरते हुए देखी समझी जाती है<br>बहुत दूर जलती नई-नई सीखी हुई आग।<br><br>भाषा।
सुनो, हमें अनहद की तरह<br>इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई एक अदृश्य टहनी से टिड्डियाँ उड़ीं और समझो जैसे समझी जाती है<br>रंगीन अफ़वाहें नई-नई सीखी चींखती हुई भाषा।<br><br>चीं-चीं ‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं– किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं अगरधत्त जंगल लताएं! खाती-पीती, सुख से ऊबी और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ। फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’ (कनखियाँ इशारे, फिर कनखी) बाक़ी कहानी बस कनखी है।
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई<br>एक अदृश्य टहनी से<br>टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें<br>चींखती हुई चीं-चीं<br>‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–<br>किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं<br>अगरधत्त जंगल लताएं!<br>खाती-पीती, सुख से ऊबी<br>और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही<br>शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।<br>फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’<br>(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)<br>बाक़ी कहानी बस कनखी है।<br><br> हे परमपिताओं,<br>परमपुरुषों–<br>बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो! <br><br/poem>
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