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तर्पण / अनीता वर्मा

25 bytes added, 16:10, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनीता वर्मा
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{{KKCatKavita}}<poem>जब नहीं थे राम बुद्ध ईसा मोहम्मद
तब भी थे धरती पर मनुष्य
जंगलों में विचरते आग पानी हवा के आगे झुकते
अब गंगा की तरह इसे भी साफ़ करना मुश्किल
कब तक बचे रहेंगे हम इस जल से करते हुए तर्पण.
</poem>
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