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|रचनाकार=अरुण कमल
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और वे मेरी ही ओर चले आ रहे थे
तीनों
एक तेज़ प्रकाश लगातार मुझ पर
पुत रहा था
जैसे बवंडर में पड़ा काग़ज़ का टुकड़ा
मैं घूम रहा था
तभी वे समवेत स्वर में बोले--
मांग, क्या मांगता है उल्लू!
अरे चमत्कार! चमत्कार!
देव आज हिन्दी बोले
देवों ने तज दी देवभाषा
देव निजभाषा बोले!
अब क्या मांगना चाहना प्रभु
आपने सब कुछ तो दे दिया जो
आप बोले निजभाषा
धन्य भाग प्रभु! धन्य भाग!
और तीनों देव जूतों की विश्व-कम्पनी
के राष्ट्रीय शो रूम के उद्घाटन में दौड़े-
आज का उनका यही कार्यक्रम था न्यूनतम!
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