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धार / अरुण कमल

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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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कौन बचा है जिसके आगे
 
इन हाथों को नहीं पसारा
 
यह अनाज जो बदल रक्त में
 
टहल रहा है तन के कोने-कोने
 
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
 
बारिश सरदी लू में
 
सब उधार का, माँगा चाहा
 
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
 
सब कर्जे का
 
यह शरीर भी उनका बंधक
 
अपना क्या है इस जीवन में
 
सब तो लिया उधार
 
सारा लोहा उन लोगों का
 
अपनी केवल धार ।
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