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अपनी पीढ़ी के लिए / अरुण कमल

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|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
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वे सारे खीरे जिनमें तीतापन है हमारे लिए
वे सब केले जो जुडवां हैं
वे आम जो बाहर से पके पर भीतर खट्टे हैं चूक
और तवे पर सिंकती पिछली रोटी परथन की
सब हमारे लिए
ईसा की बीसवीं शाताब्दी की अंतिम पीढी के लिए
वे सारे युद्ध और तबाहियां
मेला उखडने के बाद का कचडा महामारियां
समुद्र में डूबता सबसे प्राचीन बंदरगाह
और टूट कर गिरता सर्वोच्च शिखर
सब हमारे लिए
पोलिथिन थैलियों पर जीवित गौवों का दूध हमारे लिए
शहद का छत्ता खाली
हमारे लिए वो हवा फेफडे की अंतिम मस्तकहीन धड.
पूर्वजों के सारे रोग हमारे रक्त में
वे तारे भी हमारे लिए जिनका प्रकाश अब तक पहुंचा ही नहीं हमारे पास
और वे तेरह सूर्य जो कहीं होंगे आज भी सुबह की प्रतीक्षा में
सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे सुंदर पुरूष
और वो फूल जिसे मना है बदलना फल में
हमारी ही थाली में शासकों के दांत छूटे हुए
और जरा सी धूप में ध्धक उठती आदिम हिंसा
वे सारे खीरे जिनमें तीतापन है हमारे लिए<br>वे सब केले जो जुडवां हैं<br>वे आम जो बाहर से पके पर भीतर खट्टे हैं चूक<br>और तवे पर सिंकती पिछली रोटी परथन की<br>सब हमारे लिए<br>ईसा की बीसवीं शाताब्‍दी की अंतिम पीढी के लिए<br>वे सारे युद्ध और तबाहियां<br>मेला उखडने के बाद का कचडा महामारियां<br>समुद्र में डूबता सबसे प्राचीन बंदरगाह<br>और टूट कर गिरता सर्वोच्‍च शिखर<br>सब हमारे लिए<br>पोलिथिन थैलियों पर जीवित गौवों का दूध हमारे लिए<br>शहद का छत्‍ता खाली<br>हमारे लिए वो हवा फेफडे की अंतिम मस्‍तकहीन धड.<br>पूर्वजों के सारे रोग हमारे रक्‍त में<br>वे तारे भी हमारे लिए जिनका प्रकाश अब त‍क पहुंचा ही नहीं हमारे पास<br>और वे तेरह सूर्य जो कहीं होंगे आज भी सुबह की प्रतीक्षा में<br>सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे सुंदर पुरूष<br>और वो फूल जिसे मना है बदलना फल में<br>हमारी ही थाली में शासकों के दांत छूटे हुए<br>और जरा सी धूप में ध्‍धक उठती आदिम हिंसा<br><br>  जब भी हमारा जिक्र हो कहा जाए<br>हम उस समय जिए जब<br>सबसे आसान था चंद्रमा पर घर<br>और सबसे मोहाल थी रोटी<br>और कहा जाए<br>हर पीढी की तरह हमें भी लगा<br>कि हमारे पहले अच्‍छा अच्छा था सब कुछ<br>और आगे सब अच्‍छा अच्छा होगा।</poem>
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