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निशान / अरुण कमल

19 bytes added, 08:06, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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फिर शायद कभी कुछ न सोचूँ
 
काम में इतना बझ जाऊँगा
 
कि कभी याद भी शायद न आए
 
पर निशान तो रह ही जाएगा
 
जैसे पपीते के पूरे शरीर पर
 
खाँच
 
हर पत्ते के टूटने की--
 
हर क़दम की मोच
 
वैसे ही केवल निशान
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