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17:14, 5 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अरुणा राय
}}
ग़ुलामों की{{KKCatKavita}}<brpoem>ग़ुलामों की ज़ुबान नही होती <br> सपने नही होते<br>इश्क तो दूर<br>जीने की<br>बात नही होती<br>मैं कैसे भूल जाऊँ <br> अपनी ग़ुलामी <br> कि अपना ख़ुदा होना <br>
कभी भूलता नहीं तू...
</poem>
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